कागजों में बसा सपनों का शहर
ग्वालियर काउंटर मैग्नेट सिटी के मामले में ठीक उल्टा हुआ. यहां जमीन का चयन पहले हुआ, फिर रिहायशी परिसर बनाए गए जिसमें कई दशकों का समय लग गया. आर्थिक गतिविधियां पैदा करने की ओर न तो साडा ने रुचि दिखाई और न ही राज्य सरकार ने.
, ‘वहां सबसे बड़ी खामी सुरक्षा की है. पुलिस थाना तक नहीं है. जो सड़कें उस इलाके को शहर से जोड़ती हैं, वहां सूरज ढलते ही मीलों तक रोशनी की किरण नहीं दिखाई देती. पानी-सीवर की व्यवस्था भी ठीक नहीं है. लोग कैसे जाएं रहने जब उन्हें वहां कोई सुविधा ही नहीं दिख रही. ना सरकारी महकमे के दफ्तर वहां पहुंचे,