ग्वालियर व्यापार मेले में नाटक “रंग दे बसंती “ के मंचन में दिखा पथभ्रष्ट होती युवा पीढ़ी का असली चेहरा
ग्वालियर । आज का युवा अपनी संस्कृति, सभ्यता और संस्कारों को भूलकर अलग ही राह पर चल रहा है। उसकी न कोई दिशा है और न ही कोई मंजिल। पथभ्रष्ट होता युवा कैसे परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति अपनी जवाबदेही को समझेगा? क्या इसीलिए भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, महारानी लक्ष्मीबाई और पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ने देश की खातिर अपनी जान गंवाई थी। आज पूरे देश में भृष्टाचार अपनी जड़ें जमा चुका है। आदर्श माने जाने वाले नेता सारी मर्यादाएं लांघ भृष्टाचार के नित-नये रिकॉर्ड बना रहे हैं। क्या ऐसा है मेरा भारत?
देश की मौजूदा व्यवस्था पर चोट करते हुए कुछ ऐसे ही सवाल छोड़ गया “ नाटक रंग दे बसंती “ ।
ग्वालियर व्यापार मेले में मंगलवार की शाम फेसिलिटेशन सेंटर में टेलीविजन कलाकार नारायण प्रताप सिंह भदौरिया द्वारा लिखित एवं निर्देशित नाटक “रंग दे बंसती“ का मंचन किया गया। सुसज्जित मंच और सतरंगी रोशनी के बीच लाइट और साउंड के शानदार संयोजन के साथ ही पारंपरिक परिधानों से सजे-धजे 24 युवा कलाकारों ने अपने जीवंत अभिनय और बेहतरीन संवादों से दर्शकों को रोमांचित कर उनके दिलो-दिमाग पर अपनी अमिट छाप छोड़ी।
मंच पर कुछ इस तरह दिखा दृश्य
मंच से जैसे ही पर्दा हटता है, सूत्रधार अपनी पत्नी के साथ बैठा नजर आता है। उसके माथे पर चिंता की लकीरें दिख रही हैं। वह अपनी पत्नी से देश की वर्तमान व्यवस्था के हालातों पर चर्चा करते हुए कहता है, कि आज बिना रिश्वत के कोई काम ही नहीं हो रहा है। पुलिस अफसर हो या फिर प्रशासनिक अधिकारी। कभी युवाओं के आदर्श माने जाने वाले नेता भी अब भ्रष्टाचार के दलदल में समाए हुए हैं। क्या मैंने ऐसे सभ्य और आदर्श भारत की कल्पना की थी? मैंने तो चंद्रशेखर आजाद, पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, महारानी लक्ष्मीबाई और भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी और देश पर मर मिटने वाले युवा बनाए थे। न जाने मेरे देश को कौनसा रोग लग गया है, जो लोग अब इतने स्वार्थी हो गए हैं और अपने हितों के लिए अपनों के ही खून के प्यासे होते जा रहे हैं। वे अपने स्वार्थ के खातिर देश को बेचने से बाज नहीं आ रहे हैं। ऐसी स्थिति में आज देश को बचाने के लिए एक बार फिर हमें वीरांगना लक्ष्मीबाई के साथ, मंगल पाण्डेय, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और बिस्मिल जैसे देशभक्त युवा चाहिए। इस दौरान युवा क्रांतिकारी मंच पर देश रक्षा और राष्ट्र प्रेम का भाव जगाने के साथ ही देश भक्ति गीत और अपने बलिदान की गाथा से दर्शकों को भावविभोर कर देते हैं। साथ ही युवाओं को संदेश देते हैं कि 20-21 साल की उम्र में देश के खातिर अपने प्राणों की आहुति देने वाले युवाओं का बलिदान व्यर्थ न जाए।
क्योंकि जिस दिन हमें शहीदी दिवस मनाकर अपने शहीदों का स्मरण करना चाहिए, उस दिन युवाओं पर वेलेंटाईन-डे का खुमार छाया रहता है। क्या यही हमारी संस्कृति और सभ्यता है?