“नारी कल्याण और समाज सेवा का पर्याय :- लेडी कमला देवी जाधव”
“लेडी कमला देवी जाधव जन्मशती पर विशेष”
ग्वालियर:- जब पूरा संसार द्वितीय विश्व युद्ध 1939-45 की विभीषिका से झुलस रहा था तब हिन्दुस्तान की एक रियासत ग्वालियर में भी सामाजिक बदलाव की बयार आ रही थी । बात वर्ष 1941की है तब सिंधिया राजवंश के मराठा नरेश ने विजातीय कन्या विजयाराजे से विवाह कर ग्वालियर के रूढ़िवादी मराठा समाज में भारी हलचल मचा दी ।इसी दौरान उनकी दो मौसेरी बहनों का विवाह भी दो अन्य मराठा सरदारों से सम्पन्न हुआ। आगे चल कर महारानी विजयाराजे सिंधिया ने राजनीति में प्रतिमान स्थापित किये । दो बहुओं में से एक जो मराठा सरदार ‘देव राव कृष्ण राव जाधव’ की धर्मपत्नी थीं ‘लेडी कमला देवी जाधव के नाम से जानी गईं और ग्वालियर में बतौर समाज सेविका खूब नाम कमाया। आज भी लेडी कमला देवी जाधव की आँखें दूसरे शरीरों में स्थापित होकर संसार में हो रहे बदलावों को निहारती होंगी।दरअसल दुनिया छोड़ने से पूर्व उन्होंने अपने नेत्र दान कर दिये थे।
लेडी कमला देवी जाधव अशकोट के क्रान्तिकारी पाल परिवार की पुत्री थीं । उनका विवाह पूर्व का नाम मोहिनी पाल था। उनके पिता बहादुर सिंह पाल ने उन्हें बड़े लाड़ प्यार से पाला था। पिथौड़ागढ़ के रावल खेत की अल्हड पहाड़ी सुंदरी मोहनी पाल बचपन में टरटराते मेंढकों को पकड़ते, राम गंगा में तैरते, खेलते कूदते, पहाड़ों को पार करते लखनऊ के ईसाबेला थोबर्न कालेज में स्नातक की शिक्षा प्राप्ति के दौरान ही 1मार्च 1941को उनका विवाह मराठा जाधव परिवार में हो गया। मराठा सरदार देव राव कृष्ण राव जाधव की पत्नी बनते ही उनके जीवन में एक दम बदलाव आ गया । विवाह पूर्व गाँधी जी के आवाह्न पर स्वदेशी आन्दोलन में उन्होंने अपने कीमती विदेशी परिधानों को आग के हवाले कर दिया, और साधारण खादी की पोशाक पहनने लगी । रूढ़िवादी मराठा समाज के प्रगतिवादी सरदार की पत्नी बनने के बावजूद उन्हें अमीरों जैसी पोशाक और रस्मों रिवाज अपनाने के लिए विवश होना पड़ा। उस समय मराठा समाज में परदा प्रथा जैसी कई कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ा । आगे चल कर परिवार जन व मित्रों के सहयोग से वे मराठी रस्मों रिवाज,रियासती तौर तरीके और मराठी भाषा की अच्छी जानकार हो गईं।
देश की आजादी के बाद ग्वालियर भी राजाशाही से प्रजातांत्रिक प्रणाली की तरफ अग्रसर हुआ । सरदार देव राव कृष्ण राव जाधव जो अब तक रियासत में कृषि क्षेत्र की महती जिम्मेदारी निभाते थे सक्रिय राजनीति का हिस्सा बनकर बतौर सांसद दिल्ली पहुंच गए। लेडी कमला देवी जाधव ने सियासती दांव पेंच से विलग होकर पूरी तरह से समाज सेवा की तरफ कदम बढ़ाया । श्रमिकों के बच्चों को घर के समीप शिक्षित करने के अल्पकालीन प्रयासों के उपरांत उन्होंने नारी और समाज कल्याण का रास्ता अपनाया और उस पर ताउम्र चलती रहीं ।
लेडी कमला देवी जाधव म.प्र.समाज कल्याण बोर्ड की उपाध्यक्ष भी रहीं तथा अखिल भारतीय सामाजिक स्वास्थ्य संघ की ग्वालियर शाखा की भी अध्यक्ष थीं ।उन्होंने शहर के चावड़ी बाजार क्षेत्र से रेड लाइट एरिया को हटवाने और पतिता उद्धार के संवेदनशील कार्य को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में महत्वपूर्ण योगदान दिया ।
शहर में इंदिरा गांधी कामकाजी महिला आवास गृह, अल्पकालीन महिला आवास गृह और परिवार परामर्श केंद्र आदि संस्थाओं का सुचारु रूप से संचालन किया। उन्होंने ग्वालियर में फैमिली प्लानिंग एसोसिएशन आफ इंडिया की शाखा स्थापित की और वर्ष 1989 से 2000 तक बतौर अध्यक्ष उसे गुणात्मक एवं रचनात्मक विस्तार दिया। एफ पी ए आई की मौजूदा शाखा प्रबंधक नीलम दीक्षित ने लेडी कमला देवी जाधव के योगदान की विस्तृत जानकारी देते हुए उनके कार्यों की सराहना की है। अखिल भारतीय सामाजिक स्वास्थ्य संघ की सचिव रजनी मेंहदेले ने लेडी कमला देवी जाधव की अध्यक्षता दौरान हुए कार्यों और टीम भावना का उल्लेख करते हुए उनके साथ साथ उनकी सहयोगी कैप्टन मंदाकिनी वाकनकर के कार्यों को प्रेरणादायक निरूपित किया ।उन्होंने अल्पकालीन महिला आवास गृह में होने वाले सालाना विवाह के आयोजन से जुड़े विवाद का हाईकोर्ट से एडवोकेट विद्या टाम्बट् की मदद से अनुमति हासिल करने में कामयाबी का भी उल्लेख किया। लेडी कमला देवी जाधव बहुत धार्मिक विचारों वाली महिला थी। उन्होंने अपने पति के साथ राम कृष्ण मिशन आश्रम से दीक्षा ली थी। उनका परिवार स्वामी स्वरूपानंद जी को भरपूर सम्मान देता था। काले पत्थर की कृष्ण प्रतिमा की इष्ट रूपेण पूजा करती थीं ।अपने परिवार में बाल बच्चों और उनके भी बच्चों के प्रति वात्सल्य पूर्ण व्यवहार होता था । उनकी नातिन ने बयाया कि वह मग्न होकर पूजा करती थीं । सभी बच्चे पास में बैठ जाते थे और प्रसाद पाकर प्रसन्न होते थे। उसने बताया तब हम लोगों की हिन्दी उतनी अच्छी नहीं थी। नानी कहानी सुनाते हुए हमारे लिए बीच- बीच में आन्ग्ल भाषा में मुश्किल शब्दों का अनुवाद भी कर देती थीं । एक दिन दोपहर में लंका दहन की कथा सुनाते सुनाते नानी सो गईं और मैं अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए उन्हें जगाती रह गई । उनकी पुत्री श्रीमती मंजुला पाटनकर आज भी उनके दिखाए रास्ते पर चल रही हैं। उन्होंने सुश्री प्रीति कपूर के साथ मिल कर वर्ष 1998 में विशेष बच्चों के पुनर्वास व शिक्षण कार्य का सूत्रपात किया जो आज ‘रोशनी राम कृष्ण आश्रम ‘के नाम से विख्यात है।