बाचा बना देश का पहला सौर-ऊर्जा आत्म-निर्भर गाँव, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश की सोच रंग लाई।
भोपाल:- मध्यप्रदेश शासन के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश बनाने का सपना साकार हो रहा है। इसी कड़ी में वर्षों से ऊर्जा की कमी की पीड़ा झेल रहे थे। आख्रिरकार हम ऊर्जा-सम्पन्न बन गये। हमारा गाँव बाचा देश का पहला सौर-ऊर्जा आत्म-निर्भर गाँव बन गया है। यह बताते हुए अनिल उइके बेहद उत्साहित हो जाते हैं। वे आदिवासी युवा हैं और आदिवासी बैतूल जिले के बाचा गाँव के सौर-ऊर्जा दूत भी हैं।बाचा गाँव बैतूल जिले के घोड़ाडोंगरी तहसील की खदारा ग्राम पंचायत का छोटा सा गाँव है।बाचा गाँव सौर ऊर्जा समृद्ध गाँव के रूप में देश भर में प्रतिष्ठा अर्जित कर चुका है। यहाँ की आबादी 450 है। यह मुख्य रूप से आदिवासी बहुल गाँव है। अधिकतर गोंड परिवार रहते हैं।
हमारे गाँव के सभी 75 घरों में सौर ऊर्जा से चलने वाले उपकरणों का उपयोग हो रहा है। यह बताते हुए खदारा ग्राम पंचायत के पंच शरद सिरसाम कहते हैं कि-‘हमने बाचा को ऊर्जा की जरूरत में पूरी तरह से आत्म-निर्भर गाँव बनाने के लिए संकल्प लिया है। आईआईटी बाम्बे और ओएनजीसी ने मिलकर बाचा को तीन साल पहले ही इस काम के लिये चुना था। इतने कम वक्त में ही हम बदलाव की तस्वीर देख रहे हैं।
अब सभी 75 घरों में अब सौर-ऊर्जा पैनल लग गये हैं। सबके पास सौर-ऊर्जा भंडारण करने वाली बैटरी, सौर-ऊर्जा संचालित रसोई है। इंडक्शन चूल्हे का उपयोग करते हुए महिलाओं ने खुद को प्रौद्योगिकी के अनुकूल ढाल लिया है। खदारा ग्राम पंचायत की पंच शांतिबाई उइके बताती हैं कि- ‘सालों से हमारे परिवार मिट्टी के चूल्हों का इस्तेमाल कर रहे थे। आग जलाना, आँखों में जलन, घना धुआँ और उससे खाँसी होना आम बात थी। अब हम इंडक्शन स्टोव का उपयोग करने के आदी हो चुके हैं। बड़ी आसानी से इस पर खाना बना सकते हैं। दूध गर्म करना, चाय बनाना, दाल-चावल, सब्जी बनाना बहुत आसान होगया है। हालांकि हमारे पास एलपीजी गैस है, लेकिनइसका उपयोग अब कभी-कभार हो रहा है।‘
श्रीमती राधा कुमरे बताती है कि पारंपरिक चूल्हा वास्तव में एक तरह से समस्या ही था। मैं अब इंडक्शन स्टोव के साथ सहज हूँ। किसी भी समय उपयोग ला सकते है।वन सुरक्षा समिति के अध्यक्ष हीरालाल उइके कहते हैं – सूर्य-ऊर्जा के दोहन के प्रभाव को गाँव से लगे जंगल पर कम होते जैविक दबाव से स्पष्ट मापा जा सकता है। वन सुरक्षा समिति के प्राथमिक कार्यों का हवाला देते हुए वे बताते हैं कि सभी 12 सदस्य वन संपदा की रक्षा करते है। दिन-रात सतर्क रहते है ताकि कोई भी जंगल को नुकसान न पहुँचाए। हमें अवैध पेड़-कटाई और वन्य जीव शिकार जैसी गतिविधियों के बारे में हर समय सचेत रहना पड़ता है। इससे पहले, महिलाएँ ईंधन की लकड़ी के लिए प्राकृतिक रूप से गिरी हुई टहनियों को इकट्ठा करने के लिए नियमित रूप से जंगल जाती थीं। लकड़ी बीनने जंगल जाना रोजाना का काम था। अब यह रुक गया है और हमें काफी राहत मिली है।‘
‘मैं इस गांव का सबसे पुराना मूल निवासी हूँ। मैंने करीब से देखा है कि चीजें कैसे बदली हैं।’ परिवार की आजीविका के लिए तीन एकड़ की खेती पर निर्भर करीब 80 साल के शेखलाल कवड़े याद करते हैं कि-कैसे बाचा मे कोई सड़क नहीं थी। सफाई नहीं थी। बिजली नहीं थी। आज गाँव पूरी तरह से बदल गया है। मैं खुश हूँ कि अपने जीवन-काल में ही बदलाव का आनंद मिल रहा है।बाचा गाँव की सामूहिक भावना को साझा करते हुए, अनिल उइके का कहना है कि-‘बिजली के बिल कम होने से हर कोई खुश है। कारण यह है कि बिजली की खपत में भारी कमी आई है। सौर ऊर्जा संचालित एलईडी बल्ब के साथ घरों की ऊर्जा आवश्यकताओं को सौर ऊर्जा से आसानी से पूरा किया जा रहा है।
खदारा ग्राम पंचायत के सरपंच राजेंद्र कवड़े बताते है कि- ‘बाचा ने आसपास के गाँवों को प्रेरित किया है।’ उनका कहना है कि ‘खदारा और केवलझिर गाँव के आसपास के क्षेत्रों में भी रुचि पैदा हुई है। केवलझिर बाचा से सिर्फ 1.5 किमी दूर है, जबकि खदारा 2 किमी है। मुझे लगता है कि बाचा ने मुझे जिले में ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान और सम्मान दिलाया है। जहाँ भी जाता हूँ लोग सम्मान देते हैं। गवर्नमेंट कॉलेज के बीएससी अंतिम वर्ष के छात्र अरुण कावड़े की भी है। उनका कालेज बाचा से 15 किलोमीटर दूर है। उनके पिता के पास चार एकड़ खेती की जमीन है। यही उनकी जीविका का सहारा है। वे कहते है कि-‘हम धीरे-धीरे सौर ऊर्जा पर पूरी तरह निर्भर हो रहे है’ क्योंकि ग्रिड द्वारा आपूर्ति की गई बिजली महंगी हो रही है। दूसरा बड़ा कारण यह है कि यह पर्यावरण के अनुकूल है। मुझे गर्व होता है जब मेरे दोस्त मुझसे मेरे घर आने को करते हैं यह देखने कि इंडक्शन चूल्हे के साथ सौर ऊर्जा से चलने वाली रसोई कैसे काम कर रही है। अब तक लगभग सभी दोस्त आ चुके हैं।