भूतों पर क्यों यकीन क्यो?
भूत होते हैं या नहीं, ये बहस का मुद्दा नहीं है, इस सवाल का जवाब लोगों ने विज्ञान में तलाशने की कोशिश की। उन्नीसवीं सदी के आते-आते अध्यात्मवाद ने ज़ोर पकड़ा, इसे मानने वाले ये कहते थे कि इस दुनिया से जा चुके लोग, ज़िंदा लोगों से संवाद कर सकते हैं। इसके लिए मंडलियां बैठने लगीं, आत्माओं की तस्वीरें लेने का चलन इसी दौर में बढ़ा। आलमी जंग के बाद अध्यात्मवाद का कमोबेश ख़ात्मा हो गया, लेकिन इसका असर अब भी देखा जा सकता है। आज भी ‘घोस्ट हंटर्स’ वैज्ञानिक तरीक़ों से भूतों के अस्तित्व को साबित करने की कोशिश करते देखे जाते हैं। भूत-प्रेत और जिन्नों का सवाल किसी एक धर्म का नहीं, सभी मज़हबों में भी इन्हें लेकर तर्क-वितर्क होते रहे हैं। हिंदू धर्म में तो बाक़ायदा गुज़री हुई आत्माओं का आह्वान किया जाता है, तंत्र-मंत्र में यक़ीन करने वाले अक्सर ये काम करते हैं। अघोरी संप्रदाय के लोग इसके लिए मशहूर हैं। पित्र पक्ष में हिंदू धर्म के लोग अपने गुज़र चुके पितरों को तर्पण देते हैं, माना जाता है कि आत्माएं वापस इस दुनिया में आती हैं।
ताइवान के अलावा जापान, कोरिया, चीन और वियतनाम में भूतों का महीना मनाते हैं, इनमें एक ख़ास दिन प्रेत दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन के बारे में ये मान्यता है कि ‘घोस्ट डे’ पर आत्माएं धरती पर मुक्त रूप से विचरण करती हैं। दूसरे धर्मों की ही तरह ताइवान में भी भूतों को अच्छे और बुरे के दर्जे में बांट कर देखा जाता है। दोस्ताना भूत वो होते हैं, जो पुश्तैनी या पारिवारिक रूप से जुड़े होते हैं, भूतोत्सव के दौरान इनका घर में स्वागत किया जाता है। वहीं, जो प्रेत दोस्ताना नहीं माने जाते, वो क्रोधित होते हैं या फिर भूखे, ऐसे भूत, इंसानों को डराते हैं। प्रेतों की कहानियां सिर्फ़ बुरे सबक़ नहीं देतीं, वो उम्मीदें भी जगाती हैं। वो ये एहसास दिलाती हैं कि मौत के बाद आप दूसरी दुनिया में जाकर भी इस दुनिया से ताल्लुक़ बनाए रख सकते हैं। अगर आपने कुछ बुरा काम किया है, तो आप के पास मौक़ा होगा कि आप पछतावा कर लें, पुराने पापों का प्रायश्चित कर लें