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ग्वालियर-¬चंबल की राजनीति में महल का वर्चस्व बरकरार

ग्वालियर-¬चंबल की राजनीति में महल का वर्चस्व बरकरार

ग्वालियर। ग्वालियर-चंबल क्षेत्र मध्यपृदेश के उत्तरी हिस्से में स्थित  है। इस क्षेत्र में 34 विधानसभा और चार लोकसभा क्षेत्र है जो 8 जिलों में विभक्त है। यह क्षेत्र मुख्य रूप से डकैतों के लिये प्रसिद्ध रहा है। जब चंबल घाटी में बंदूकें गरजती थी, राष्ट्रीय स्तर के पत्रकार और फिल्म निर्माता यहां आकृष्ठ होते थे। यदि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित रामप्रसाद बिस्मिल और नाना फडनवीस, झांसी की रानी इस क्षेत्र से जुड़े थे तो पुतली बाई, मानसिंह और फूलन देवी जैसे डकेतों का भी यह क्षेत्र रहा है। सच कहा जाये तो शौर्य, संगीत और कला के क्षेत्र के समृद्ध होते हुए भी चंबल घाटी अभिषप्त रही है। विकास के नाम पर आष्वासन और घोषणायें जरूर मिली है लेकिन क्षेत्र का वांछित विकास प्रतीक्षित है। हाँ, अवैध उत्खनन के लिये चंबल और सिंध नदियों का यह क्षेत्र समाचार पत्रों की सुर्खियों में कभी-कभी आ जाता है। अवैध उत्खनन के लिये चंबल ही एकलौता बदनाम नहीं है, नर्मदा और सोन व अन्य नदियों की घाटियों में भी अवैध उत्खनन निर्भिकता पूर्वक किये जा रहे है।
कुल 34 विधानसभा क्षेत्रों में ग्वालियर में छे, मुरैना में छे, भिंड में पांच, षिवपुरी में पांच, गुना में चार, अषोक नगर में तीन, दतिया में तीन और श्योपुर जिले में दो विधानसभा क्षेत्र हैं। विधानसभा चुनाव 2013 में भाजपा को 20 सीटों पर विजय मिली थी और उसे 38 प्रतिषत वोट प्राप्त हुए थे। कांग्रेस के हिस्से में 12 सीटें आयी थी और 35 प्रतिषत वोट उसे मिले थे। बसपा को दो सीटें और 16 प्रषित वोट प्राप्त हुए थे। इस क्षेत्र में वोट 68 प्रतिषत वोट डाले गये थे। इस क्षेत्र में 32 प्रतिषत अन्य पिछड़ावर्ग वोटर हैं जबकि अगरी जाति के 28 प्रतिषत मतदाता हैं। अनुसचित जाति व जनजाति के मतदाता 29 प्रतिषत उनमें अनुसूचित जाति 21 प्रतिषत और अनुसूचित जनजाति 8 प्रतिषत हैं। अन्य मतदाता 11 प्रतिषत हैं।
गत विधानसभा चुनाव 2013 में बहुजन समाज पार्टी को 16 प्रतिषत मत प्राप्त हुए थे लेकिन दो सीटों पर विजय प्राप्त हुई थी। परन्तु अंबाह, दीमनी, श्योपुर, मुरैना, भिंड, करेरा, पोहरी, कोलारस, सोंधा और ग्वालियर ग्रामीण में बसपा का प्रभाव देखा गया था। बसपा श्योपुर, सोमावली, मुरैना और भिंड में द्वितीय स्थान पर रही। जबकि कांग्रेस तीसरे स्थान पर आ गई थी। 2018 के विधानसभा चुनाव में मायावती का अकेले चुनाव लड़ने के निर्णय से जहां कांग्रेस पार्टी को झटका लगा है, वहीं भाजपा को लाभ मिलता दिख रहा है। यदि कांग्रेस, बसपा, सपा और जीजीपी के साथ मिलकर लड़ती है तो भाजपा को मात दी  जा सकती है। बसपा में भी सुगबुगाहट है कि युवा वर्ग मायावती से इसलिये नाराज है कि उन्होंने बसपा में भाई-भतीजावाद को प्रोत्साहित किया है। दूसरी तरफ सपाक्स एक नई शक्ति के रूप में उदित हुई है जिससे भाजपा और कांग्रेस पार्टी दोनों परेेशान है। इसलिये कांग्रेस पार्टी भी बसपा से गठबंधन बनाने के प्रति अनिच्छा व्यक्त कर रही है।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि ग्वालियर-चंबल क्षेत्र की राजनीति ‘महल’ से नियंत्रित होती है। भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियां महल से प्रभावित है। पूर्व मंत्री और सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रचार अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया गया है और पार्टी उन्हें अगली पंक्ति का योद्धा मानकर चल रही हैं। क्योंकि वह बेदाग है और एक प्रखर वक्ता के रूप में उदित हुए हैं। दूसरी तरफ भाजपा भी ‘राजमाता’ और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की आभा से आलोकित होकर चुनाव क्षेत्र में आगे बढ़ रही है। ग्वालियर आरएसएस, बजरंगदल और हिन्दूमहासभा का भी गढ़ रहा है। इस क्षेत्र से  कैबिनेट में 7 मंत्रियों को स्थान मिला है और केन्द्र में नरेन्द्र सिंह तोमर इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व मंत्री के रूप में कर रहे है। राज्य मंत्रिमंडल में सर्वश्री नरोत्तम मिश्र, माया सिंह, रूस्तम सिंह, लाल सिंह आर्य, नारायण सिंह कुषवाहा, यषोधरा राजे सिंधिया और जयभान सिंह पवैया और केन्द्र में नरेन्द्र सिंह तोमर मंत्री है। इतने मंत्रियों के बावजूद विकास के क्षेत्र में यह क्षेत्र अभी भी पिछड़ा है। अपेक्षित विकास नहीं हो पाया है। रोज़गार, स्वास्थ्य,  उद्योग, शिक्षा, कृषि लोगों की आय आदि क्षेत्र में यह संभाग मंथर गति से चल रहा है। यदि हम अतीत में झांके तो देखेंगे कि यह क्षेत्र विकसित शहरों में था। यहां जल निकासी, पेयजल, शिक्षा, सड़कें, सीवेज आदि की उचित व्यवस्था थी। ग्वालियर राज घराना देष में प्रगतिषील राजघरानों में था। आज कानून व्यवस्था से लेकर नदियों में अवैध उत्खनन के लिये यह क्षेत्र प्रसिद्ध हो रहा है। मालनपुर औद्योगिक क्षेत्र आंसू बहा रहा है। कई उद्योग यहां से जा चुके हैं। श्योपुर के पालपुर कूनो क्षेत्र में गिर के शेर सुप्रीम कोर्ट के आदेष के बावजूद नहीं आ रहे है। लेकिन गिर में वे मृत्यु को प्राप्त हो रहे हैं। 23 शेरों की वहां मौत हो चुकी है। दोनों राज्यों में भाजपा सरकारें हैं बावजूद, इस दिशा में बात नहीं बन रही है।
मध्यप्रदेश में चुनाव का शंखनाद हो चुका है। कांग्रेस और भाजपा के नेता अमाने-सामने हैं। मतदाताओं को लुभाने के लिये तरह-तरह के जुमले गढ़े जा रहे हैं। राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी इस क्षेत्र में रैलियां निकाल चुके हैं। रोड शो कर चुके है। उनके साथ कमलनाथ व सिंधिया भी रहे हैं। मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च सभी धार्मिक स्थलों पर माथा टेक रहे हैं। दूसरी तरफ भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर, मुध्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान भी यात्रायें कर चुके हैं।
माह अप्रैल में भारत बंद आंदोलन में इस क्षेत्र में हिंसा हुई। यह आंदोलन सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के विरूद्ध था जिसमें कहा गया था कि एससीएसटी उत्पीड़न मामले में जांच के बाद ही गिरप्तारी होगी। उसके बाद सपाक्स का भी बड़ा आंदोलन हुआ। दूसरी बार स्थिति नियंत्रण में रही। इस आंदोलन को सवर्णों का समर्थन था। भाजपा का सिरदर्द बढ़ा है क्योंकि उसके वोट सर्वण ही अधिक रहे हैं।
मध्यप्रदेश में 230 विधानसभा सीटें है। 2013 के चुनाव में भाजपा को 165 सीटें मिली थी। उसे 44.5 प्रतिशत वोट मिले थे कांग्रेस को 58 सीटें मिली थी और 36.3 प्रतिषत वोट मिले। बसपा को 4 सीटें और 6.48 प्रतिषत वोट मिले और तीन सीटें अन्य को मिली थी।

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