देश के दो तिहाई शहरों में नहीं हैं सीवर प्रणाली
शहरी स्वच्छता सर्वेक्षण में भी साफ सफाई और खुले में शौच को रोकने पर जोर दिया जा रहा है। शहरों की सीवर प्रणाली और उससे निकलने वाले सीवेज के ट्रीटमेंट को सर्वेक्षण में जगह नहीं दी गई है। शहरी निकायों के पास धन की कमी होने और राज्य सरकारों के प्राथमिकता में शामिल न होने की वजह से शहरों के नीचे मलमूत्र दबाया या बहाया जा रहा है।
देश के 4000 से अधिक शहरी निकायों में सीवर लाइनों की सख्त जरूरत है। एक आंकड़े के मुताबिक देश के महानगरों में 40 से 50 फीसद क्षेत्रों में ही सीवर लाइनें बिछी हैं। इसके मुकाबले छोटे शहरों और कस्बों की हालत तो बद से बदतर है। सारा मलमूत्र कभी खुलेआम बहाया जाता है तो कभी जमीन के भीतर बिना साफ किये डाला जा रहा है।
मानसून सीजन में होने वाली बारिश के समय में सीवर लाइनों में ही मल मूत्र खुल्लम खुल्ला बहा दिया जाता है। इसी सीजन में सीवर के पानी के लिए स्थापति सामुदायिक ट्रीटमेंट प्लांट अमूमन बंद ही रहते हैं।
शहरी नियोजन की अदूरदर्शिता और प्रशासनिक लापरवाही का यह एक नमूना है। शहरों के मूलभूत ढांचे की जरूरत पर कभी ध्यान ही नहीं दिया गया है। बढ़ते शहरीकरण के अनुपात में ठोस बंदोबस्त नहीं किया जा रहा है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक आंकड़े के मुताबिक शहरी क्षेत्रों से रोजाना 6200 करोड़ लीटर सीवर का मलमूत्र निकलता है। लगभग एक तिहाई हिस्से सीवरेज के ही ट्रीटमेंट की क्षमता है। बारिश के पानी की निकासी के लिए शहरों में बनाई जाने वाली नालियां न के बराबर ही हैं, जिससे बारिश का पानी सड़कों ही बहता है। इससे शहरी सड़कें ध्वस्त हो जाती है, जिसका असर शहरी ट्रैफिक पर पड़ता है।
केंद्र सरकार ने जवाहर लाल नेहरू नेशनल अर्बन रिन्यूवल मिशन (जेएनएनयूआरएम) के तहत कुछ शहरी निकायों में सीवर लाइन बिछाने की शुरुआत की थी, लेकिन वह भी बंद हो गई। स्वच्छ भारत मिशन के तहत अब देश को खुले में शौच मुक्त बनाने पर जोर है। इसमें उल्लेखनीय सफलता भी मिली है, लेकिन सीवरेज ट्रीटमेंट और सीवर लाइनों की दिशा में बहुत कुछ होता नहीं दिख रहा है। देश के बड़े शहरों में सीवर लाइनों की हालत पतली है।