बात सच्ची है पर कड़वी है:- नम्रता सक्सेना
ग्वालियर:- मध्य प्रदेश का ग्वालियर शहर अपने आप में विरासत की अनुपम एवं अनोखी धरोहर है, प्राचीन काल से वर्तमान परिवेश में निरंतर बदलते स्वरूप के साथ साथ अपनी महत्वत्ता तथा प्रमाणिकता के लिए जाने जाना वाला एक ऐसा शहर जो आज विकास के कई पाए दानों को पार कर भारत के साथ साथ विश्व में भी अपनी छवि को बनाए हुए हैं! वजह है राजनीति के दिग्गज नेताओं की जन्म स्थली एवं कर्म स्थली को ग्वालियर शहर अपने नाम के साथ लिए हुए हैं! हम बात कर रहे हैं ग्वालियर शहर की, साथ साथ शहर से से सटे हुए आसपास के क्षेत्र की जहां प्रकृति के सहभागी एवं मानव जीवन में विकास के आधार बेजुबान जानवरों की आज स्थिति काफी दयनीय हो गई है जबकि इन्ही बेजुबानों के संरक्षण एवं सशक्तिकरण को लेकर राजनीतिक गलियारे के सत्ताधारी सड़क से सत्ता तक पहुंच जाते हैं लेकिन इन बेजुबानों के लिए किए गए वादे की फाइल दबती चली जाती है!
चाहे वो राजनीतिक सत्ता दल के सफेद पोश धारक जनप्रतिनिधि हो, या फिर समाज में रहने वाले लोग जो आज अपने निजी स्वार्थ के लिए बेजुबान जानवरों के प्रति भी मानवता का व्यवहार भूलते जा रहे हे! कई बार ऐसी दुर्लभ तस्वीरें सामने आती हैं। जिनमें अगर हम बात करें गोवंश की तो कहना मुनासिब होगा किस शहर की सड़कें ना जाने कितने गौ माताओं के रक्त से लाल हो चुकी है और इन लापरवाह एवं एहसान फरोशी मानव समाज में रहने वाले लोगों के कारण कई गौ माता रक्त रंजीत होने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रही हैं और इन सबका कारण सफेदपोशो के झूठे वादे एवं समाज में रहने वाले लोगों का झूठा बेजुबान जानवर प्रेम। वहीं बात करें अन्य बेजुबान जानवरों की तो ना जाने कितने ऐसे जानवर होंगे जो आज मानव रूपी इंसान से दो वक्त की रोटी के लिए आस लगाए हुए रहते हैं, लेकिन बेरहम समाज इन्हें धिक्कार कर ऐसे भगा देता है जैसे इन बेजुबानों ने इनकी प्रॉपर्टी या तीजोड़ी पर डाका डाल दिया हो।
वहीं अगर नगर निगम प्रशासन ग्वालियर की बात की जाए तो इनके मिजाज तो मिलते ही नहीं स्थानीय प्रशासन की अनेकों योजनाएं इन बेजुबानओं के लिए संचालित हैं, लेकिन सिर्फ कागजों में धरातल पर कभी कभार ही होती है सफल। इसका सीधा उदाहरण है शहर की सड़कों पर बेजुबान जानवरों के साथ आए दिन हो रही दुर्घटनाएं। लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि कुछ लोगों में आज भी मानवता जिंदा है जो निरंतर इनके लिए तन मन धन से कार्य कर रहे। और भी प्रयासरत हैं, लेकिन वहीं अगर बात की जाए ग्वालियर शहर से दिग्गजों के साथ साथ शहर के रह वासियों की तो आखिर इनके मन में क्यों नहीं आता इन बेजुबानओं के लिए प्यार। झूठे दिखावे के लिए करोड़ों रुपए जनप्रतिनिधि, समाज के लोग होर्डिंग बैनर में खर्च कर देते हैं लेकिन एक रोटी खिलाने में भी इनकी आत्मा को होता है दर्द। वाह शहर तेरा भी क्या कहना?
कहते हैं गौमाता माता का रूप होती है इसका दूध पीकर ही शरीर को बल मिलता है, वहीं वफादारी में कुत्ता मालिक के लिए सदैव समर्पित रहता है। चिड़ियों की चहचहाहट से लोगों की सुबह खूबसूरत हो जाती है फिर भी इन चीजों को भूल, आज लोग इन बेजुबान से दूर होते जा रहे हैं जबकि यह स्वयं प्रकृति के देयक हे यदि यह हमारे बीच से विलुप्त होते जाएंगे तो बड़ा नुकसान मानव समाज को भी उठाना पड़ेगा इसमें कोई शक नहीं!
इस लेख से माध्यम से आमजन से कहना चाहूंगी आज इन बेजुबानों को भले ही हमारी जरूरत है लेकिन जब हमें इनकी जरूरत होगी तो हम बहुत पछताएंगे क्योंकि जब तक यह हमारे स्वार्थ की बलि चढ़ जाएंगे और हम हाथ पीटते रह जाएंगे।
इसलिए सोई हुई नींद से जागो और इन बेजुबानों के प्रति प्रेम का पिटारा खोल दो। नम्रता सक्सेना, अध्यक्ष श्वान एनिमल एंड सोशल वेलफेयर फाउंडेशन मध्य प्रदेश।