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फिजा में पौष माह में ही फागुनी रंग बिखरे।

फिजा में पौष माह में ही फागुनी रंग बिखरे।

ग्वालियर:- तबले और पखावज की मदमाती थाप, गायन की रसभीनी तानें और संतूर व मोहनवीणा वादन की मीठी व मादक धुनें निकालीं तो ऐसा लगा कि मानो जाड़ों के नर्म-नाज़ुक लम्हों ने सुरों की गरमाहट को लिबास बनाकर ओढ़ लिया है। मौका था तानसेन समारोह के दूसरे दिन प्रातःकालीन सभा का। इस सभा में सुश्री यखलेश बघेल व श्री निर्भय सक्सेना ने ध्रुपद व ख्याल गायकी के रंग बिखेरे तो श्री विपुल कुमार राय ने संतूर व श्री दीपक छीरसागर ने मोहनवीणा वादन से अलग ही रंग भरे।
प्रतिष्ठित तानसेन समारोह में बुधवार को प्रात:कालीन सभा का आगाज परंपरागत ढंग से स्थानीय शंकर गांधर्व संगीत महाविद्यालय के ध्रुपद गायन से हुआ। यहां के विद्यार्थियों व आचार्यों ने राग ” देसी” में ध्रुपद रचना पेश की जिसके बोल थे ” रघुवर की छवि सुंदर”।

आज बृजराज होरी खेलत…..
गान मनीषी तानसेन की ध्रुपद परंपरा को आगे बढ़ा रहीं सुश्री यखलेश बघेल ने जब धमार की बंदिश ” आज बृजराज होरी खेलत ” का सुमधुर गायन किया तो फिजा में पौष माह में ही फागुनी रंग बिखर गए। डागरवाणी परंपरा के प्रतिष्ठित गायक व ग्वालियर ध्रुपद केन्द्र के गुरू श्री अभिजीत सुखदाणे की सुयोग्य शिष्या यखलेश ने राग ‘गूजरी तोड़ी’ को अपने ध्रुपद गायन के लिए चुना। इस राग में अलाप, मध्यलय अलाप और द्रुत लय अलापचारी कमाल की रही। उन्होंने जलद शूलताल की बंदिश “तेरो बल प्रताप” प्रस्तुत कर अपने गायन का समापन किया। उनके गायन में झलक रही आवाज की सुस्पष्टता व खनकदारी ने रसिकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस सभा के पहले कलाकार के रूप में उनकी प्रस्तुति हुई। यखलेश के साथ पंडित संजय आगले ने पखावज से मिठास भरी संगत की।

संतूर से झरे मधु पगे सुर….
वैसे ही संतूर की मिठास अद्भुत होती है।  देश के श्रेष्ठतम युवा संतूर वादकों में से एक श्री विपुल कुमार राय की अंगुलियों से संतूर पर जब अखरोट की लकड़ी से बनी स्टिक थिरकीं तो उसमें से मधु पगे मीठे-मीठे रस बरस उठे।
उनके संतूर वादन से झर रही मंत्रमुग्ध कर देने वाली  ‘लयकारी’ मधुर आलाप एवं तंत्रकारी धुन पर गजब के नियंत्रण से वशीभूत होकर संगीत रसिक अपनी सुध-बुध खो बैठे। राग की पवित्रता एवं सौंदर्यबोध ने उनके वादन में चार चाँद लगा दिए। उन्होंने राग “अहीरी तोड़ी” में संतूर वादन किया। यह राग ” अहीर भैरव व तोड़ी राग” का मिश्रण है। इस राग में विपुल जी ने आलाप जोड़ की अद्भुत प्रस्तुति दी। उनके साथ तबले पर विख्यात तबला वादक श्री हितेन्द्र दीक्षित ने गज़ब की संगत की।
काश्मीर के सूफिया घराने के प्रसिद्ध संतूर वादक पंडित भजन सोपोरी के शिष्य विपुल कुमार की गिनती देश के बेहतरीन संतूर कलाकारों में होती है । वे देश ही नहीं दुनियाभर के विभिन्न देशों में सफल प्रस्तुतियां देकर भारतीय शास्त्रीय संगीत का जादू बिखेर चुके हैं। वर्तमान में आप म्यूजिक एण्ड फाइन आर्ट कॉलेज संकाय दिल्ली विश्व विद्यालय में संतूर प्रशिक्षक के रूप में कार्यरत हैं।

आली बाकी अँखियाँ जादू भरी… ”
अत्यंत मधुर और लोकप्रिय राग ” वृंदावनी सारंग” में जब अपने ग्वालियर शहर के उदयीमान युवा कलाकार  निर्भय सक्सेना ने विलंबित तिलवाड़ा ताल में बंदिश ” ए पिया लागी लागी….” का गायन किया तो घरानेदार गायकी जीवंत हो उठी।  इसके बाद छोटा ख्याल “आली बाकी अँखियाँ जादू भरी… ” पेश कर रसिकों की खूब वाह वाही लूटी। उन्होंने दादरा सुनाकर अपने गायन को विराम दिया। जिसके बोल थे ” तुम साँची कहो…”।
निर्भय सक्सेना ग्वालियर, आगरा और जयपुर घराने की गायिकी पर समान अधिकार रखते हैं। उनके गायन में तबले पर श्री गांधार राजहंस और हारमोनियम पर श्री जितेन्द्र शर्मा ने संगत की।

 

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